Gayatri Sadhana / गायत्री साधना

गायत्री साधना
एक बार अकबर और बीरबल यमुना नदी के किनारे पर ठंडी हवा का आनंद लेते हुए टहल रहे थे । अचानक अकबर ने एक ब्राह्मण को देखा, बहुत दयनीय हालत में पास से गुजर रहे लोगों से भिक्षा माँग रहा था। अकबर ऐसे क्षण का मजाक बनाने का मौका नहीं छोड़ता था। उसने बीरबल से कहा, "बीरबल ओह, तो यह है आप के ब्राह्मण जिनको "ब्रह्म देवता" के रूप में जाना जाता है जो इस तरह से भीख माँग रहा है।"

बीरबल ने उस समय कुछ भी नहीं कहा लेकिन जब अकबर किले में लौट गया, तब बीरबल वापस उसी जगह पर फिर से आया, जहाँ वो ब्राह्मण भिक्षा मांग रहा था। बीरबल उससे बात की, उससे पूछा कि वह क्यों भिक्षायापन करते हो? गरीब ब्राह्मण ने कहा है कि उसके पास जो भी था, वह सब खो दिया है। कोई धन अथवा आभूषण नहीं है, कोई काम नहीं है, कोई भूमि और कोई भी जीवन यापन के संसाधन नहीं शेष रहे, इसलिए वह अपनी परिस्थितियों के अधीन होकर परिवार के भरण पोषण हेतु एक भिखारी होने के लिए मजबूर है। बीरबल ने उस से पूछा कि कितना पैसा वह एक पूरे दिन में कमा लेता हैं । गरीब ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि वह कुछ 6 से 8 "अशर्फियाँ" कमाता है, एक दिन में।

बीरबल ने भीख माँगना रोकने के लिए उसके लिए काम देने की पेशकश की और पूछा की अगर आप को मेरे लिए काम करना पड़े तो क्या आप भिक्षायापन छोड़ देंगे? ब्राह्मण ने प्रसन्नता पूर्वक पूछा है कि क्या मेरा काम होगा? मुझे क्या करना है?

बीरबल ने उस से कहा कि आप को हर रोज ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर के, स्वच्छ वस्त्र धारण कर के प्रतिदिन इसी स्थान पर सुबह से शाम तक की अवधी में 101 माला गायत्री मंत्र का जाप करना है और हर शाम को आप के इस स्थान को छोड़ने से पहले, आप को 10 अशर्फियाँ पहुंचा दी जायेंगी। बस ये शर्त है कि आप किसी से भिक्षा नहीं मांगेगे। ब्राह्मण ने सहर्ष इस काम को स्वीकार कर लिया।

अगले दिन से, वह ब्राह्मण एक अलग ही व्यक्ति था, वह उसी जगह पर था, उसी स्थान पर बैठने के लिए, लेकिन किसी से भी भिक्षा याचना नहीं की। वह दिन, किसी भी दिन से अलग था क्योंकि पूरा दिन उस ब्राह्मण ने दिन के अंत तक भिखारी के रूप में कोई अपमान की भावना नहीं झेली और गायत्री जाप के असर से भी उसका मन प्रफुल्लित रहा।

उस शाम को वह प्रसन्नचित्त हो करे 10 अशर्फीयां ले के अपने परिवार में लौटा। दिन बीते तो बीरबल ने उस के दैनिक जाप की माला संख्या और अशर्फियों की संख्या दोनों बढ़ा दीं। अब थोड़ा - थोड़ा करके, उसे गायत्री मंत्र के इस जाप में आनंद आना शुरू हो गया और उसके दिल को गायत्री मंत्र की शक्तियां दीन दुनिया के प्रवाह से दूर ले जा रहीं थीं। अब वह जल्दी से घर लौटने अथवा अन्य इच्छाओं के लिए चिन्तित नहीं था। भूख प्यास इत्यादि शारीरिक व्याधायें उसे अब पहले की तरह नहीं सताती थीं।

धीरे धीरे गायत्री मंत्र के शक्तिशाली सतत जाप के कारण, उस के चेहरे पे तेज झलकने लगा। उनका तेज इतना प्रबल हो गया की आने जाने वाले लोगो का ध्यान सहज ही उस ब्राह्मण की ओर आकर्षित होने लगा, वहां अधिक से अधिक लोग उनके दर्शन मात्र की इच्छा से आने लगे और स्वतः ही वहां पर मिठाई, फल, पैसे, कपड़े आदि की भेंट चढाने लगे। कभी 6 से 8 अशर्फियां कमाने के लिए जो ब्राह्मण सारा दिन अपमानित जीवन जीता था, आज उसे ना तो अपमान झेलने की ज़रुरत हुईं, ना ही बीरबल से प्राप्त होने वाली अशर्फियाँ उसे याद रही, और ना ही श्रद्धापूर्वक चढ़ाई गई वस्तुओं का कोई आकर्षण रहा।

अब वो मन और आत्मा से सारा दिन गायत्री जाप में समाहित हो चुका था। जल्द ही यह खबर कि वहाँ एक महान योगी संत का आगमन हुआ है, सारे शहर में बहुत प्रसिद्ध हो गई, परन्तु उस ब्राह्मण को स्वयं इस प्रसिद्धी का पता नहीं था। जो लोग वहां दर्शन के लिए आते थे, उन्होंने ही वहां पे उनके स्थान को परवर्तित कर के एक छोटे से मंदिर और आश्रम का स्वरूप दे दिया और दैनिक रूप से वहां पर मंदिर की दिनचर्या की ही तरह पूजा अर्चना भी होने लगीं।

जल्दी ही यह खबर अकबर को भी पहुँची और उनको भी इस "अज्ञात नए संत" के बारे में उत्सुकता और दर्शनाभिलाषा हुई और उन्होंने भी उस *"संत"* की तपोभूमि पर दर्शनार्थ जाने का फैसला किया और वह बहुत से दरबारियों आदि और बेशुमार शाही तोहफे के साथ अच्छी तरह से अपनी राजसी शैली में बीरबल को भी अपने साथ लेकर उस संत से मिलने चल पड़ा।

वहाँ पहुँच कर, सारे शाही भेंटे अर्पण कर के ब्राह्मण के पैर छुए। ऐसे तेजोमय संत के दर्शनों से गद-गद ह्रदय ले के बादशाह अकबर, बीरबल के साथ बाहर आ गया। अकबर बहुत खुश और आश्चर्यचकित था इस "संत" ब्राह्मण के तेज को देखने से। जब अकबर-बीरबल ने मंदिर से बाहर कदम रखा, तब अकबर से बीरबल ने पूछा कि आप इस संत को जानतें है? अकबर ने इनकार कर दिया और फिर बीरबल ने उसे बताया कि वह वो ही भिखारी ब्राह्मण है जिस पर आप कुछ महीने पहले व्यंग कर के कह रहे थे की ये ही "ब्राह्मण देवता" होता है क्या? और आज आप - बादशाह अकबर - इन्हीं के पैरों में शीश नवा कर आयें हैं। अकबर के आश्चर्य की सीमा नहीं रही और उसी आश्चर्य और असंख्य सवालों में डूबते-उतरते मन को सम्हाल कर बीरबल से पूछा कि यह इतना बड़ा बदलाव कैसे हुआ?

अकबर के आश्चर्य की सीमा नहीं रही और उसी आश्चर्य और असंख्य सवालों में डूबते-उतरते मन को सम्हाल कर बीरबल से पूछा कि यह इतना बड़ा बदलाव कैसे हुआ?

बीरबल ने कहा कि वह अपने मूल रूप में ब्राह्मण है, बस वह परिस्थितिवश अपने धर्म की सच्चाई, शक्तियों और विभिन्न उपायों से दूर था और वह केवल अपने धर्म के असीमित कोष से, केवल मात्र गायत्री मंत्र स्वरूप एक उपाय-रूप सन्मार्ग पुनः अपना लिया और देखें कि क्या इन ब्राह्मण की आज जगह है और कैसे बादशाह ने खुद को पाया इनके तेजोमय स्वरुप के सन्मुख !!!

"यही गायत्री का प्रभाव है"

यह हम सभी पर भी सामान रूप से अच्छी तरह लागू होता है, जो क्षण जीवन में हम हमारे "उपकरण" से दूर रह कर जी रहे हैं जब तक हम पीड़ित हैं आवश्यकता है की हम भी पुनः अपने धर्म से जुड़ें, अपने संस्कारों को जाने और उनको पूरी तरह माने । मूल ब्रह्म रूप में जो विलीन सो ही ब्राह्मण। ब्राह्मण को सिर्फ शुद्ध ब्राह्मण होने की ज़रुरत है और फिर उसके कोई रास्ते नहीं रूकते।।

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