1. अपने शिष्य भीष्म
को नहीं कर सके पराजित
महाभारत
के अनुसार महाराज शांतनु के पुत्र भीष्म ने भगवान परशुराम से ही अस्त्र-शस्त्र की
विद्या प्राप्त की थी। एक बार भीष्म काशी में हो रहे स्वयंवर से काशीराज की
पुत्रियों अंबा, अंबिका और बालिका को अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य के लिए उठा लाए
थे। तब अंबा ने भीष्म को बताया कि वह मन ही मन किसी और का अपना पति मान चुकी है तब
भीष्म ने उसे ससम्मान छोड़ दिया, लेकिन हरण कर लिए जाने पर उसने अंबा को अस्वीकार
कर दिया।
तब अंबा भीष्म के गुरु परशुराम के पास पहुंची और उन्हें अपनी व्यथा
सुनाई। अंबा की बात सुनकर भगवान परशुराम ने भीष्म को उससे विवाह करने के लिए कहा,
लेकिन ब्रह्मचारी होने के कारण भीष्म ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। तब परशुराम और
भीष्म में भीषण युद्ध हुआ और अंत में अपने पितरों की बात मानकर भगवान परशुराम ने
अपने अस्त्र रख दिए। इस प्रकार इस युद्ध में न किसी की हार हुई न किसी की जीत।
2. ऐसे हुआ भगवान परशुराम का जन्म
महर्षि
भृगु के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ था। विवाह के बाद
सत्यवती ने अपने ससुर महर्षि भृगु से अपने व अपनी माता के लिए पुत्र की याचना की।
तब महर्षि भृगु ने सत्यवती को दो फल दिए और कहा कि ऋतु स्नान के बाद तुम गूलर के
वृक्ष का तथा तुम्हारी माता पीपल के वृक्ष का आलिंगन करने के बाद ये फल खा लेना।
किंतु सत्यवती व उनकी मां ने भूलवश इस काम में गलती कर दी। यह बात
महर्षि भृगु को पता चल गई। तब उन्होंने सत्यवती से कहा कि तूने गलत वृक्ष का आलिंगन
किया है। इसलिए तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों वाला रहेगा और तेरी
माता का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मणों की तरह आचरण करेगा।
तब सत्यवती ने महर्षि भृगु से प्रार्थना की कि मेरा पुत्र क्षत्रिय
गुणों वाला न हो भले ही मेरा पौत्र (पुत्र का पुत्र) ऐसा हो। महर्षि भृगु ने कहा
कि ऐसा ही होगा। कुछ समय बाद जमदग्रि मुनि ने सत्यवती के गर्भ से जन्म लिया। इनका
आचरण ऋषियों के समान ही था। इनका विवाह रेणुका से हुआ। मुनि जमदग्रि के चार पुत्र
हुए। उनमें से परशुराम चौथे थे। इस प्रकार एक भूल के कारण भगवान परशुराम का स्वभाव
क्षत्रियों के समान था।
3. किया श्रीकृष्ण के प्रस्ताव का समर्थन
महाभारत
के युद्ध से पहले जब भगवान श्रीकृष्ण संधि का प्रस्ताव लेकर धृतराष्ट्र के पास गए
थे, उस समय श्रीकृष्ण की बात सुनने के लिए भगवान परशुराम भी उस सभा में उपस्थित
थे। परशुराम ने भी धृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण की बात मान लेने के लिए कहा था।
4. नहीं हुआ था श्रीराम से कोई विवाद
गोस्वामी
तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता
स्वयंवर में शिव धनुष उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। धनुष टूटने की
आवाज सुनकर भगवान परशुराम भी वहां आ गए। अपने आराध्य शिव का धनुष टूटा हुआ देखकर
वे बहुत क्रोधित हुए और वहां उनका श्रीराम व लक्ष्मण से विवाद भी हुआ।
जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम
पुन: अयोध्या लौट रहे थे। तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर
बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम ने बाण धनुष पर चढ़ा कर छोड़ दिया। यह देखकर
परशुराम को भगवान श्रीराम के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो गया और वे वहां से चले
गए।
5. क्यों किया माता का वध?
एक
बार परशुराम की माता रेणुका स्नान करके आश्रम लौट रही थीं। तब संयोग से राजा
चित्ररथ भी वहां जलविहार कर रहे थे। राजा को देखकर रेणुका के मन में विकार उत्पन्न
हो गया। उसी अवस्था में वह आश्रम पहुंच गई। जमदग्रि ने रेणुका को देखकर उसके मन की
बात जान ली और अपने पुत्रों से माता का वध करने को कहा। किंतु मोहवश किसी ने उनकी
आज्ञा का पालन नहीं किया।
तब परशुराम ने बिना सोचे-समझे अपने फरसे से उनका सिर काट डाला। ये
देखकर मुनि जमदग्रि प्रसन्न हुए और उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को कहा। तब
परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने और उन्हें इस बात का ज्ञान न रहे ये
वरदान मांगा। इस वरदान के फलस्वरूप उनकी माता पुनर्जीवित हो गईं।
6. क्यों किया कार्तवीर्य अर्जुन का वध?
एक
बार महिष्मती देश का राजा कार्तवीर्य अर्जुन युद्ध जीतकर जमदग्रि मुनि के आश्रम से
निकला। तब वह थोड़ा आराम करने के लिए आश्रम में ही रुक गया। उसने देखा कामधेनु ने
बड़ी ही सहजता से पूरी सेना के लिए भोजन की व्यवस्था कर दी है तो वह कामधेनु के
बछड़े को अपने साथ बलपूर्वक ले गया। जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने कार्तवीर्य
अर्जुन की एक हजार भुजाएं काट दी और उसका वध कर दिया।
7.
इसलिए किया क्षत्रियों का संहार?
कार्तवीर्य
अर्जुन के वध का बदला उसके पुत्रों ने जमदग्रि मुनि का वध करके लिया। क्षत्रियों
का ये नीच कर्म देखकर भगवान परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने कार्तवीर्य
अर्जुन के सभी पुत्रों का वध कर दिया। जिन-जिन क्षत्रिय राजाओं ने उनका साथ दिया,
परशुराम ने उनका भी वध कर दिया। इस प्रकार भगवान परशुराम ने 21 बार धरती को
क्षत्रियविहिन कर दिया।
8.
ब्राह्मणों को दान कर दी संपूर्ण पृथ्वी
महाभारत
के अनुसार परशुराम का ये क्रोध देखकर महर्षि ऋचिक ने साक्षात प्रकट होकर उन्हें इस
घोर कर्म से रोका। तब उन्होंने क्षत्रियों का संहार करना बंद कर दिया और सारी
पृथ्वी ब्राह्मणों को दान कर दी और स्वयं महेंद्र पर्वत पर निवास करने लगे।
9.
परशुराम का कर्ण को श्राप
महाभारत
के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के ही अंशावतार थे। कर्ण भी उन्हीं का शिष्य था।
कर्ण ने परशुराम को अपना परिचय एक सूतपुत्र के रूप में दिया था। एक बार जब परशुराम
कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे। उसी समय कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया।
गुरु की नींद में विघ्न न आए ये सोचकर कर्ण दर्द सहते रहे, लेकिन उन्होंने परशुराम
को नींद से नहीं उठाया।
नींद से उठने पर जब परशुराम ने ये देखा तो वे समझ गए कि कर्ण
सूतपुत्र नहीं बल्कि क्षत्रिय है। तब क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया
कि मेरी सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता होगी, उस समय
तुम वह विद्या भूल जाओगे। इस प्रकार परशुरामजी के श्राप के कारण ही कर्ण की मृत्यु
हुई।
10. राम से कैसे बने परशुराम?
बाल्यावस्था
में परशुराम के माता-पिता इन्हें राम कहकर पुकारते थे। जब राम कुछ बड़े हुए तो
उन्होंने पिता से वेदों का ज्ञान प्राप्त किया और पिता के सामने धनुर्विद्या सीखने
की इच्छा प्रकट की। महर्षि जमदग्रि ने उन्हें हिमालय पर जाकर भगवान शिव को प्रसन्न
करने के लिए कहा। पिता की आज्ञा मानकर राम ने ऐसा ही किया। उस बीच असुरों से
त्रस्त देवता शिवजी के पास पहुंचे और असुरों से मुक्ति दिलाने का निवेदन किया। तब
शिवजी ने तपस्या कर रहे राम को असुरों को नाश करने के लिए कहा।
राम ने बिना किसी अस्त्र की सहायता से ही असुरों का नाश कर दिया।
राम के इस पराक्रम को देखकर भगवान शिव ने उन्हें अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए।
इन्हीं में से एक परशु (फरसा) भी था। यह अस्त्र राम को बहुत प्रिय था। इसे प्राप्त
करते ही राम का नाम परशुराम हो गया।
11. फरसे से काट दिया था श्रीगणेश
का एक दांत
ब्रह्मवैवर्त
पुराण के अनुसार एक बार परशुराम जब भगवान शिव के दर्शन करने कैलाश पहुंचे तो भगवान
ध्यान में थे। तब श्रीगणेश ने परशुरामजी को भगवान शिव से मिलने नहीं दिया। इस बात
से क्रोधित होकर परशुरामजी ने फरसे से श्रीगणेश पर वार कर दिया। वह फरसा स्वयं
भगवान शिव ने परशुराम को दिया था। श्रीगणेश उस फरसे का वार खाली नहीं होने देना
चाहते थे। इसलिए उन्होंने उस फरसे का वार अपने दांत पर झेल लिया, जिसके कारण उनका
एक दांत टूट गया। तभी से उन्हें एकदंत भी कहा जाता है।
12.
ये थे परशुराम के भाइयों के नाम
ऋषि
जमदग्रि और रेणुका के चार पुत्र थे, जिनमें से परशुराम सबसे छोटे थे। भगवान
परशुराम के तीन बड़े भाई थे, जिनके नाम क्रमश: रुक्मवान, सुषेणवसु और विश्वावसु
था।
13.
अमर हैं परशुराम
हिंदू
धर्म ग्रंथों में कुछ महापुरुषों का वर्णन है जिन्हें आज भी अमर माना जाता है।
इन्हें अष्टचिरंजीवी भी कहा जाता है। इनमें से एक भगवान विष्णु के आवेशावतार
परशुराम भी हैं-
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण। कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन।। सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
इस श्लोक के अनुसार अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमान,
विभीषण, कृपाचार्य, भगवान परशुराम तथा ऋषि मार्कण्डेय अमर हैं। ऐसी मान्यता है कि
भगवान परशुराम वर्तमान समय में भी कहीं तपस्या में लीन हैं।
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