ये प्रार्थना अपने ईष्ट से करें। धरती माता को प्रणाम करें। तिल के उबटन से नहाएं। नहाकर के साफ व स्वच्छ वस्त्र पहनें। ईश्वर की पूजन करें। प्रथम पूजनीय देवता भगवान गणेश का गंध,पुष्प,अक्षत, धूप, दीप से पूजन करें। लड्डु और दूर्वा समर्पित करें।
इस दिन जन्मनक्षत्र का पूजन किया जाता है। जन्मदिन पर अष्टचिरंजीवी का पूजन व स्मरण करना चाहिए। यह पूजन आयु में वृद्धि करता है। अष्टचिरंजीवी- अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि ये आठ चिरंजीवी हैं जिन्हें अमरत्व प्राप्त है। अष्टचिरंजीवी को प्रणाम करें। इनके लिए तिल से होम करें।
अष्टचिरंजीवी मंत्र इस प्रकार है -
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविनः।।
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थात्अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि को प्रणाम है। इन नामों के स्मरण रोज सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त दूर होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।
ऊँ कुलदेवताभ्यौ नमः मंत्र से कुलदेवता का पूजन करें। अब जन्म नक्षत्र, भगवान गणेश, सूर्यदेव, अष्टचिरंजीवी, षष्ठी देवी की स्थापना चावल की ढेरियों पर करें। नाम मंत्र से पूजन करें। भगवान मार्कण्डेय से दीर्घायु की प्रार्थना करें। तिल और गुड़ के लड्डु तथा दूध अर्पित करें। षष्ठी देवी को दही भात का नैवेद्य अर्पित करें। अब स्वयं तिल-गुड़ के लड्डु तथा दूध का सेवन करें।
पूजन के बाद माता-पिता को प्रणाम करें। सभी आदरणीय लोगों को और अपने गुरुजनों को प्रणाम करें। उनसे आर्शीवाद लें। माता-पिता बच्चों को उपहार में सिक्का व रूपया दें।
ब्राह्मण भोजन करवाएं। इस दिन जन्मपत्रिका में एक मोली अर्थात कि लाल रंग का धागा बांधे। और हर साल एक-एक गांठ बांधते जाएं। मासांहारी पदार्थो को इस दिन नहीं खाएं। नेलकटिंग व शेविंग भी नहीं करना चाहिए। जन्मदिन के दिन सुंदरकांड का आयोजन किया जाना चाहिए।
जन्मदिन के दिन दीपक व मोमबत्ती को नहीं बुझाना चाहिए। शुभ कार्यों के लिए जलाए दीपक को बुझाने वाला व्यक्ति नरक भोगता है।
अगर आप रात्रि 12 बजे मनाते हैं जन्मदिन तो हो जाएं सावधान, बुला रहे हैं दुर्भाग्य को।
एक अजीब सी प्रथा इन दिनों चल पड़ी है वो है। रात्रि 12 बजे शुभकामनाएं देने और जन्मदिन मनाने की। लेकिन क्या आपको पता है भारतीय शास्त्र इसे गलत मानता है। आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि वास्तव में ऐसा करने से कितना बड़ा अनिष्ट हो सकता है।
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि लोग अपना जन्मदिन 12 बजे अर्थात निशीथ काल ( प्रेत काल) में मनाते हैं। । निशीथ काल रात्रि को वह समय है जो समान्यत: रात्रि 12 बजे से रात्रि 3 बजे की बीच होता है। आमजन इसे मध्यरात्रि या अर्ध रात्रि काल कहते हैं। शास्त्रनुसार यह समय अदृश्य शक्तियों, भूत व पिशाच का काल होता है। इस समय में यह शक्ति अत्यधिक रूप से प्रबल हो जाती हैं।
हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देतीं किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं। जन्मदिन की क॔ई कई पार्टीयों में अक्सर मदिरा व मांस का चलन भी होता है और बाकी आम पार्टीयों में ग्रसिठ चटपटे व्यंजनदार भोजन तो होता ही है।
ऐसे में प्रेतकाल में केक काटकर, मदिरा व मांस का सेवन करने से या तामसिक व व्यंजनदार भोजन से अदृश्य शक्तियां वहाँ मंडराती है और वे प्रतिकूल असर करती हुई व्यक्ति की आयु व भाग्य में भी कमी करती हैं और दुर्भाग्य उसके द्वार पर दस्तक देता है।
साल के कुछ दिनों को छोड़कर जैसे दीपावली, नवरात्रि, जन्माष्टमी व शिवरात्रि पर निशीथ काल महानिशीथ काल बन कर शुभ प्रभाव देता है जबकि अन्य समय में दूषित प्रभाव देता है। शास्त्रों के अनुसार रात्रि के समय दी गई शुभकामनाएं प्रतिकूल फल देती हैं
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार दिन की शुरुआत सूर्योदय के साथ ही होती है और यही समय ऋषि-मुनियों के तप का भी होता है। इसलिए इस काल में वातावरण शुद्ध और नकारात्मकता विहीन होता है।
ऐसे में शास्त्रों के अनुसार सूर्योदय होने के बाद ही व्यक्ति को जन्मदिन की शुभकामनाएं देनी चाहिए क्योंकि रात्रि के समय वातावरण में रज और तम कणों की मात्रा अत्याधिक होती है और उस समय दी गई शुभकामनाएं फलदायी ना होकर प्रतिकूल बन जाती हैं।
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