एक बार उन्हें पता चला कि जयराम नाम के एक सज्जन व्यक्ति की मृत्यु हो गई है । विद्यासागर उनके घर पहुंचे और उनकी पत्नी को सांत्वना देते हुए कहा, 'जयराम जी से मैंने कुछ दिन पूर्व कर्ज लिया था, मैं कुछ रुपए देने आ रहा था की यह दुखद समाचार मिला। इन्हें रखिए और मैं बाकी की राशि धीरे-धीरे चुका दूंगा।'
इस तरह भविष्य में विद्यासागर जयराम के परिवार के लिए कुछ रुपए भेजते रहें । कुछ वर्षों बाद जयराम की विधवा को पता चला कि उनके पति से विद्यासागर जी ने कर्ज नहीं लिया था, तो वह विद्यासागर के अनूठे झूठ पर चकित रह गई । वो रोने लगी और कहा,
'आपने हमारी मदद के लिए इतना बड़ा झूठ बोला । हम आपके इस कर्ज को कैसे चुकाएंगे ? '
विद्यासागर जी बोले, ' यदि झूठ पवित्र हो तो बोलने में संकोच नहीं करना चाहिए ।'
सार: दूसरे की भलाई के लिए बोला गया झूठ सच के बराबर होता है ।
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