कौरवों और पांडवों की कुलदेवी

कौरवों और पांडवों की कुलदेवी

पांडव और कौरव क्षत्रिय परिवार में जन्मे थे। क्षत्रिय समाज विभिन्न वंशों में विभक्त हुआ, इन वंशों के नाम क्रमशः सूर्यवंश , चन्द्रवंश , रिषीवंश , और अग्निवंश। चन्द्रवंश में उत्तर भारत के महत्वपूर्ण राजवंश कुरूक्षेत्र के अधिपति प्रारम्भ में कौरव, पांडव और यादव वंश के नाम से जाने गए। पांडव वंश के वंशज ही आगे चलकर तंवर क्षत्रिय कहलाये जिन्हें तोमर भी कहा जाता है। तंवरों के पूर्वज पांडवों की कुलदेवी योगमाया को बताया गया है। अब चूँकि पांडव और कौरव एक ही परिवार के थे तो कौरवों की कुलदेवी भी योगमाया ही हैं। कहा जाता है कि पांडवों ने अपनी कुलदेवी योगमाया को भगवान श्रीकृष्ण के सहयोग से दिल्ली में विधि विधान के साथ स्थापित करवाया। तंवर क्षत्रियों की कुलदेवी के अनेक नाम मिलते हैं जैसे योगेश्वरी , चिलाय माता, सारंग आदि। ये सभी नाम देवी योगमाया के ही हैं। तो आइये जानते हैं कौन है कौरव और पांडवों की कुलदेवी योगमाया ?

योगमाया कौन हैं?
योगमाया को भगवान कृष्ण की बहिन कहा जाता है। भगवान कृष्ण की माँ देवकी का भाई कंस बहुत क्रूर था। वो अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी से परिचित था। उसे ज्ञात था कि उसकी बहिन देवकी की आठवीं संतान ही उसकी मृत्यु का कारन बनेगी। इसलिए उसने अपनी बहिन देवकी और बहनोई वासुदेव को कारागृह में डाल दिया। और उन दोनों के प्रत्येक शिशु के जन्म के पश्चात ही वो उसका वध कर देता था इस प्रकार कंस ने देवकी और वासुदेव की सात सन्तानो का वध किया परन्तु उसका काल निश्चित था इसलिए वो आठवीं संतान को नहीं मार सका। यह आठवीं संतान स्वयं भगवान् कृष्ण ही थे। जिस दिन कृष्ण का जन्म हुआ उसी दिन नन्द बाबा और यशोदा को भी एक पुत्री प्राप्त हुई जो और कोई नहीं अपितु देवी योगमाया ही थीं। भगवान् की लीला से दोनों शिशुओं का स्थान बदल दिया गया। भगवान कृष्ण के जन्म के पश्चात कारागृह में वासुदेव की बेड़ियाँ स्वतः ही खुल गयीं और वो स्वयं रात में मूसलाधार वर्षा में भगवान कृष्ण को लेकर नंदगांव पहुंचे और ननदबाबा की पुत्री योगमाया के स्थान पर कृष्ण को रखकर वे योगमाया को मथुरा लेकर गए।

योगमाया का मंदिर
आज भी दिल्ली के मेहरौली में योगमाया का मंदिर है। यह महाभारत के समय का मंदिर है, इस बात का अंदाजा इसकी प्राचीनता देखकर लगाया जा सकता है। इस मंदिर को दिल्ली के शासक महाराजा अनंगपाल तौमर जी ने पुन: स्थापित करवाया था। यहाँ योगमाया का मंदिर होने के कारण इस स्थान को योगनीपुरी कहा जाता था। इस मंदिर के निकट ही एक तालाब था जिसके अवशेष अभी भी मिलते हैं। इस तालाब का निर्माण भी महाराजा अनंगपाल ने ही करवाया था। श्रीमद्भागवतपुराण में देवी विंध्यवासिनी का उल्लेख मिलता है जो स्वयं देवी योगमाया ही हैं. वहीँ शिवपुराण में उन्हें सती का अंश कहा गया है।





Post a Comment

0 Comments