रावण और मेघनाद की कुलदेवी का नाम निकुंबला था। रावण कुल की कुलदेवी निकुंबला की गहन साधना मेघनाद ने की थी। जिससे उसने अनेक ऐसी शक्तियां प्राप्त कर ली थीं जो हर कोई प्राप्त नहीं कर सकता था। निकुंबला देवी का मंदिर वर्तमान में मध्यप्रदेश के बैतूल जिला मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर दूर बाजार गांव में स्थित है।मेघनाद ने इसी स्थान पर देवी की साधना की थी। इसलिए यहाँ पर देवी की प्रतिमा के सामने मेघनाद की भी प्रतिमा है। ऐसी मान्यता है कि मेघनाद देवी निकुंबला की साधना करके यहीं ताललोक गया और दैत्य गुरु शुक्राचार्य से भेंट की। गुरु के प्रति समर्पण से उसने शुक्राचार्य को प्रसन्न कर लिया और शुक्राचार्य से दीक्षा प्राप्त की। तब शुक्राचार्य ने मेघनाद से देवी निकुंबला की विधि विधान से साधना करने के लिए कहा। ऐसा कहकर गुरु ने उसे एक गुप्त मन्त्र और विधि बताई।
कुलदेवी का वरदान
मेघनाद ने इस साधना में कोई कमी नहीं की और कुलदेवी को प्रसन्न किया। देवी ने उसे एक रथ दिया और कहा कि जब भी तू किसी युद्ध में जायेगा तो मेरा अभिषेक और खप्पर बलि अर्चना करके इस रथ पर सवार होकर जाना। ऐसा करने से तेरे शत्रुओं का संहार निश्चित है।कुलदेवी के इस वरदान से किसी के लिए भी मेघनाद को पराजित करना असंभव था। मेघनाद ने निकुंबला देवी की साधना से अनेक दिव्य सिद्धियों को प्राप्त किया था।एक बार उसने भगवान् राम और लक्ष्मण को नागपाश में बाँध दिया था। जब अगली बार युद्ध हुआ तब युद्ध से पूर्व मेघनाद निकुंबला देवी की पूजा करके तंत्र करने जा रहा था। विभीषण द्वारा हनुमान जी को इस बात का पता चल गया था । तब हनुमान जी ने मेघनाद की इस पूजा को रोक लिया अन्यथा मेघनाद की ही विजय होती । परन्तु इसे यदि प्रारब्ध के दृष्टिकोण से देखा जाए तो विभीषण तो एक माध्यम मात्र थे जिससे रावण और मेघनाद के भेद भगवान को पता लगे।
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