भगवान विष्णु को समर्पित अक्षय तृतीया पर्व का हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है। मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान परशुराम जी भी धरती पर अवतरित हुए थे। यही वजह है कि इस दिन को परशुराम के जन्मदिन के रूप में भी मनाते हैं। इसके अलावा अन्य कथाएं भी मिलती हैं। जिनसे अक्षय तृतीया के महत्व का पता चलता है। आइए जानते हैं। कथा के अनुसार इसी दिन भगीरथ के प्रयासों से देवी गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं। इसके अलावा इस दिन देवी अन्नपूर्णा का भी जन्मदिन मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो भी शुभ कार्य किया जाता है उसमें वृद्धि होती है। किसी नए कार्य को शुरू करने से उसमें सफलता और अपार सुख-संपदा की प्राप्ति होती है। इसके अलावा इस दिन परिणय सूत्र में बंधे दंपत्तियों का दांपत्य जीवन अत्यंत प्रेम भरा होता है।
अक्षय तृतीया के दिन मां लक्ष्मी और विष्णुजी की पूजा के बाद पौराणिक कथा पढ़नी चाहिए। यह कथा इस प्रकार है कि एक धर्मदास नाम के व्यक्ति ने अक्षय तृतीया का व्रत किया। इसके बाद ब्राह्मण को दान में पंखा, जौ, नमक, गेहूं, गुड़, घी, सोना और दही दिया। यह सब देखकर उसकी पत्नी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उसने अपने पति को रोकने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह नहीं मानें। हर साल वह पूरी श्रद्धा और आस्था से अक्षय तृतीया का व्रत करते थे।
धर्मदास अपने नाम की ही तरह थे। बुढ़ापे और बीमारी की स्थिति में भी वह अक्षय तृतीया के दिन पूजा-पाठ और दान-पुण्य का कार्य करते रहे। इसी के पुण्य-प्रताप से उन्होंने अगले जन्म में राजा कुशावती के रूप में जन्म लिया। अक्षय तृतीया व्रत के प्रभाव से राजा के राज्य में किसी भी तरह की कमी नहीं थी। इसके अलावा वह राजा आजीवन अक्षय तृतीया का व्रत और दान-पुण्य करते रहे। अक्षय तृतीया पर दान का विशेष महत्व है। धार्मिक कथाओं के अनुसार इस तिथि पर कई ऐसी घटनाएं घटित हुईं। जो इस तिथि को और भी खास बना देती हैं। इस दिन किए गए दान का महत्व बढ़ा देती हैं। कथा के अनुसार द्वापर युग में महाभारत काल में जिस दिन दु:शासन ने द्रौपदी का चीर हरण किया था, उस दिन अक्षय तृतीया तिथि थी। उस दिन द्रौपदी की लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को अक्षय चीर प्रदान किया था।
कथाओं के अनुसार अक्षय तृतीया पर ही युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी। इस पात्र की यह विशेषता थी कि इसका भोजन कभी समाप्त नहीं होता था। इसी पात्र की सहायता से युधिष्ठिर अपने राज्य के भूखे और गरीब लोगों को भोजन उपलब्ध कराते थे। भविष्य पुराण में अक्षय पात्र का संबंध स्थाली दान व्रत से भी बताया गया हैं।
कहते हैं कि जिस दिन सुदामा अपने मित्र भगवान कृष्ण से मिलने गए थे, उस दिन अक्षय तृतीया तिथि थी। सुदामा के पास कृष्ण को भेंट करने के लिए चावल के मात्र कुछ मुट्ठी भर दानें ही थे, जिन्हें उन्होंने श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया। उनके इस भाव के कारण कान्हा ने उनकी झोंपड़ी को महल में बदल दिया।
मान्यता के अनुसार इस दिन किए गए दान का कई गुना फल मिलता है। हालांकि देश के अनेक हिस्सों में इस तिथि का अलग-अलग महत्व है। जैसे उड़ीसा और पंजाब में इस तिथि को किसानों की समृद्धि से जोड़कर देखा जाता है तो बंगाल में इस दिन गणपति और लक्ष्मीजी की पूजा का विधान है।
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