उसी किनारे से एक बड़े ही जहरीले बिच्छु ने नदी के अन्दर छलांग लगाई और कछुए की पीठ पर सवार हो गया। कछुए ने तैरना शुरू कर दिया। वह बुजुर्ग बड़े हैरान हुए।
उन्होंने उस कछुए का पीछा करने की ठान ली। इसलिए नदी में तैर कर उस कछुए का पीछा किया।
वह कछुआ नदी के दूसरे किनारे पर जाकर रूक गया। और बिच्छू उसकी पीठ से छलांग लगाकर दूसरे किनारे पर चढ़ गया और आगे चलना शुरू कर दिया।
वह बुजुर्ग भी उसके पीछे चलते रहे। आगे जाकर देखा कि जिस तरफ बिच्छू जा रहा था उसके रास्ते में एक भगवान का भक्त ध्यान साधना में आँखे बन्द कर भगवान की भक्ति कर रहा था।
उस बुजुर्ग ने सोचा कि अगर यह बिच्छू उस भक्त को काटना चाहेगा तो मैं करीब पहुँचने से पहले ही उसे अपनी लाठी से मार डालूँगा।
लेकिन वह कुछ कदम आगे बढे ही थे कि उन्होंने देखा दूसरी तरफ से एक काला जहरीला साँप तेजी से उस भक्त को डसने के लिए आगे बढ़ रहा था। इतने में बिच्छू भी वहाँ पहुँच गया।
उस बिच्छू ने उसी समय सांप डंक के ऊपर डंक मार दिया, जिसकी वजह से बिच्छू का जहर सांप के शरीर में प्रवेश हो गया और वह सांप वहीं अचेत हो कर गिर पड़ा था। इसके बाद वह बिच्छू अपने मार्ग पर वापस चला गया।
थोड़ी देर बाद जब वह भक्त उठा, तब उस बुजुर्ग ने उसे बताया कि भगवान ने उसकी रक्षा के लिए कैसे उस कछुवे को नदी के किनारे लाया, फिर कैसे उस बिच्छु को कछुए की पीठ पर बैठा कर साँप से तेरी रक्षा के लिए भेजा।
वह भक्त उस अचेत पड़े सांप को देखकर हैरान रह गया। उसकी आँखों से आँसू निकल आए, और वह आँखें बन्द कर प्रभु को स्मरण कर उनका धन्यवाद करने लगा,
तभी प्रभु ने अपने उस भक्त से कहा, जब वो बुजुर्ग जो तुम्हे जानता तक नही, वो तुम्हारी जीवन बचाने के लिए लाठी उठा सकता है। और फिर तू तो मेरी भक्ति में लगा हुआ था तो फिर तुझे बचाने के लिये मेरी लाठी तो हमेशा से ही तैयार रहती है ।
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